Thursday, 31 October 2013

Ehsaas

सर्दियों कि धूप का पिघलता सोना,
रेशमी मन के धागों से बांधता है बंधेज दुपट्टे
हरी हवा का फिसलता कलेवर
बटोरता है सपनीली तितलियों को,
जो पंखों पर,तुम्हारे आस पास होने के एहसास को लिए तैरती हैं...
फिर भी जानती हैं शायद 
कि
मन कि उड़ान ...मन कि ही होती है.

जानती हूँ कि चाहत पाने से परे होती है
चाहती हूँ...कि चाहत पाने से परे ही रहे...
क्यूंकि खुश्बुएं क़ैद नहीं होती
....और कुछ सपने दीवारों में सांस नहीं लिया करते
हाँ...दीवारें खड़ी ज़रूर कर देते हैं.

तुम्हारे होने का इल्म
दीवाली का रोशन दिया है,
या फिर,
होली के गुलाल कि खुश्बू
मैं नहीं जानती...
जानती हूँ तो बस इतना ...
कि पसरी हुयी यह अनछुई महक
मेरा एहसास है.
और हमेशा रहेगा.
...तुम जानते हो
मैं ज़िद्दी हूँ...

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