Thursday, 16 January 2014

देवदासी

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अर्चन-पूजन, काम और कला की माज़ी हूँ
मैं एक देवदासी हूँ.

लास्य, हास्य, पद और पद्म का इतिहास
मेरे ही साथ जागा था, रस और रास.

निरलप्त ईश्वरिया भोग्या
चिर सम्मान योग्या
राधा, द्रौपदी, शकुंतला का न्यास...
काल मेरा जीवन अथवा स्वयं की अधिशासी हूँ?

पूछति हूँ...
...क्योंकि...
मैं एक  देवदासी हूँ


मदिरों का चित्रित मिथुन भी मैं
दरबारों का नृत्य रही
वान्ग्मय की भाषा भी
अभिनय का कृत्य रही...

मानवीया आदीशक्ति रूपा
साक्षात शिव सौन्दर्य - स्वरूपा
बाँटी गयी दो फाटों में
फूलों में और कातों में.

क्रीड़ा और मानवीय सम्मोहन
साथ ही था, वैराग्य का सोहम
धरती अथवा देव...
क्या नही छलि गयी मैं एतद्मेव?


सदियों कि संस्कृति
स्त्री कि वृत्ति
बनाई मैने या बनाई गयी?
आदि से अंत तक...
सूत्र कई.

जीवन के हास्य में सनातन उदासी हूँ...
क्योंकि
स्वयं की नही...
काल, मानव, शास्त्र, कला और संस्कृति द्वारा फाँसी हूँ
हाँ, मैं ही हूँ
मैं...एक देवदासी हूँ.

~~शीबा राकेश~~